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लेखनी कविता -25-May-2023

प्रतियोगिता से अलग
शीर्षक-दिल न पढा गया
बचपन से होशियार ,
पढ़ाई में समझदार,
नौकरी की थी धुन,
थे हमेशा पुस्तक से टुन,
एक कमरे के मालिक ,
पढ़ने में चाह बहाली ,
गाड़ी धीरे-धीरे चल रहा था,
मुकाम की तरफ बढ़ रहा था,
मेहनत ने और जोश बढ़ाई ,
शुरू हुआ और कठिन पढ़ाई !
रात को सोये नहीं,
दिन कभी नींद में खोए नहीं,
चमकता भविष्य, जैसे कठिन तिलस्म,
न पाले कभी जश्न, मुकाम के पीछे भाग रहे थे हम !
एकाएक एक ने प्रेम की जाल बिछाई ,
चढ़ते यौवन में आग लगाने की कोशिश करवाई,
मेरे आस-पास बहुत चक्कर लगाई,
कोई नहीं खास, जेहन में रहा बस पढ़ाई,
खिन्न होकर उसने शोर मचाया,
कड़वी बात भी उसकी मेरा कुछ न कर पाया,
फिर ओ कही गुम हो गया,
मुझे मेरे हाल पर छोड़ गया...!
बहुत साल हो गये,
हम उसे बिलकुल भूल गये,
समय नहीं अपने आप में,
मसगुल थे जिन्दगी बनाने मे!
आज एक आवाज रूवासी ,
अचानक पीछे से बोला हमसे--
सब डिग्री फाड़, आग लगा दो,
एक मेरा दिल न पढ़ा गया तुमसे... ..😔!
"प्रतिभा पाण्डेय"(स्वरचित 25/5/2023)

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4 Comments

जबरदस्त लिखा है आपने

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Gunjan Kamal

26-May-2023 08:18 AM

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति 👌🙏🏻

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बेहतरीन

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